बांदा (उत्तर प्रदेश) से ताल्लुक रखने वाले दो मछुआरे, चांदबाबू और लक्ष्मण, पिछले 5 वर्षों से पाकिस्तान की कराची जेल में बंद हैं। ये दोनों आम जीवन जीने वाले ग्रामीण मछुआरे थे, जिनकी किस्मत ने उन्हें एक ऐसी जगह पहुंचा दिया जहां से वापसी अब तक नहीं हो सकी।
कैसे मछली पकड़ते-पकड़ते पार कर गए सीमा?
चांदबाबू और लक्ष्मण 2019 में मध्य प्रदेश के एक नदी क्षेत्र में मछली पकड़ने के लिए निकले थे। बताया जाता है कि वे गुजरात होते हुए समुद्र क्षेत्र में पहुंचे, जहां वे गलती से भारत-पाक सीमा पार कर गए।
समुद्री सीमाएं अक्सर स्पष्ट नहीं होतीं और मछुआरे बिना जानबूझे सीमाओं को पार कर जाते हैं — इसी स्थिति का शिकार हुए ये दोनों।
पाकिस्तानी कोस्ट गार्ड ने किया गिरफ्तार
सीमा पार करने के कुछ ही समय बाद, पाकिस्तानी कोस्ट गार्ड ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और कराची जेल में बंद कर दिया। इनके पास ना तो कोई पहचान पत्र था, ना पासपोर्ट — सिर्फ एक छोटी नाव और कुछ मछली पकड़ने के औजार।
5 साल बीत गए, अब तक नहीं हुई रिहाई
इनकी गिरफ्तारी को 5 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक कोई राजनीतिक या कूटनीतिक प्रयास सफल नहीं हो पाया है। भारत और पाकिस्तान के बीच तल्ख संबंधों के चलते, ऐसे मामलों में इंसानियत की गुहार भी धीमी पड़ जाती है।
परिवार वालों ने भारत सरकार से कई बार अपील की है, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया।
परिजनों का दर्द: "जिंदा हों या नहीं, हमें नहीं पता"
चांदबाबू की पत्नी और लक्ष्मण के माता-पिता हर दिन अपने प्रियजनों की एक झलक देखने की आस में जी रहे हैं। उनका कहना है:
“सरकार सिर्फ बातें करती है, लेकिन गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं।”
क्या कहती हैं अंतरराष्ट्रीय संधियाँ?
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अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों के अनुसार, सीमा पार करने वाले मछुआरों को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए, अगर वे आतंकवादी या अपराधी नहीं हैं।
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भारत और पाकिस्तान के बीच पहले कैदियों की सूची साझा करने की संधियाँ होती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में यह प्रक्रिया भी धीमी हो गई है।
सरकार और समाज से अपील
यह एक मानवीय मुद्दा है। दो गरीब मछुआरे जो अनजाने में सीमा पार कर गए, उन्हें वर्षों तक जेल में रखना किसी भी लिहाज से उचित नहीं।
भारत सरकार को चाहिए कि वह:
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पाकिस्तान से बातचीत कर इनकी रिहाई की पहल करे
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ऐसे मछुआरों के लिए सुरक्षा और जागरूकता अभियान चलाए
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पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद और कानूनी सहायता दे
एक आखिरी सवाल
क्या सरहदों की सख्ती आम इंसान की जिंदगी से बड़ी हो सकती है?
📌 निष्कर्ष:
चांदबाबू और लक्ष्मण जैसे कई निर्दोष लोग केवल सीमा के नाम पर वर्षों से जेलों में सड़ रहे हैं। यह समय है, जब हमें सरकारों से सवाल पूछना चाहिए — और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।
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