Translate(अनुवाद करें)

तेज प्रताप यादव का भावुक बयान: "जयचंद घर के अंदर भी हैं", तेजस्वी को लेकर फिर उठे सवाल

 


मां-पिता के बाद अब भाई तेजस्वी को किया याद—तेज प्रताप यादव का भावुक बयान, बोले: "जयचंद हर जगह हैं, घर के भीतर भी..."

राजनीतिक गलियारों में अक्सर अपने तीखे और बेबाक बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले तेज प्रताप यादव एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार उनका बयान न केवल राजनीतिक, बल्कि भावनात्मक भी रहा। उन्होंने माता-पिता के प्रति आदर भाव व्यक्त करते हुए अब अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव को भी याद किया—मगर इस याद में अपनापन कम और तंज़ ज्यादा नज़र आया। साथ ही उन्होंने एक गूढ़ टिप्पणी की: "जयचंद हर जगह हैं—बाहर भी और घर के भीतर भी।"

भावुकता या राजनीतिक संकेत?

तेज प्रताप यादव का यह बयान एक भावनात्मक अपील की तरह सामने आया, लेकिन इसके शब्दों में छिपा दर्द और संदेश काफी गहरा है। अपने माता-पिता, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी, को याद करते हुए उन्होंने परिवार की एकता पर ज़ोर दिया, लेकिन साथ ही तेजस्वी यादव की ओर इशारा करते हुए ऐसा लगा कि रिश्तों में कहीं कुछ खटास ज़रूर है।

"जयचंद" का संदर्भ भारतीय इतिहास में विश्वासघात का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में तेज प्रताप का यह कहना कि "जयचंद घर के अंदर भी हैं", सीधे तौर पर किसी करीबी पर अविश्वास और असंतोष का संकेत देता है। राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे परिवार के भीतर मतभेद की ओर इशारा मान रहे हैं।

भाई-भाई के रिश्ते में सियासी दरार?

तेजस्वी और तेज प्रताप—दोनों यादव परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते हैं। जहां तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री और आरजेडी का चेहरा बन चुके हैं, वहीं तेज प्रताप कई बार खुद को दरकिनार महसूस करते आए हैं। उन्होंने इससे पहले भी तेजस्वी पर संगठन में अनदेखी और फैसलों में एकाधिकार का आरोप लगाया है।

हालांकि, तेज प्रताप भावुकता और आक्रोश के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते रहते हैं। कभी वे अपने पिता को 'कृष्ण' मानते हैं और खुद को 'अर्जुन', तो कभी राजनीतिक ‘धृतराष्ट्र’ और ‘जयचंद’ जैसे शब्दों से संकेत देते हैं कि कुछ तो ऐसा है जो वह खुलकर कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पा रहे।

क्या यह सिर्फ बयान है या भविष्य की रणनीति का हिस्सा?

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप यादव का यह बयान सिर्फ भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की भूमिका भी तय कर सकता है। पार्टी में सक्रिय भागीदारी, अलग संगठनात्मक दृष्टिकोण और नेतृत्व के तरीके को लेकर तेज प्रताप की स्पष्ट असहमति, आने वाले दिनों में आरजेडी के भीतर खेमेबंदी या वैचारिक विभाजन का संकेत हो सकती है।

निष्कर्ष

राजनीति में रिश्तों की गर्मी और सियासत की सर्दी अक्सर एक-दूसरे से टकराती हैं। तेज प्रताप यादव का हालिया बयान भी इसी टकराव का परिणाम प्रतीत होता है—जहां भाई को याद तो किया गया, लेकिन एक तल्ख टिप्पणी के साथ। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यादव परिवार और आरजेडी की राजनीति इस भावनात्मक और राजनीतिक द्वंद्व से कैसे उबरती है।

No comments:

Powered by Blogger.