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ठंड से कपकपाती जिंदगियां, सुनसान पडी सडके

  

🔵फीकी पडी बाजार की चहल-कदमी, सडके सूनी

🔴ग्लोबल न्यूज 

कुशीनगर। कड़कड़ाती ठंड ने जनजीवन की रफ्तार थाम ली है। सर्द हवाओं की चुभन से सड़कें सूनी हैं, बाजारों की चहल-कदमी फीकी पड़ गई है। ठंड की सबसे ज़्यादा मार उन लोगों पर पड़ रही है, जिनके पास ठंड से बचने का कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं है। अलाव की धीमी आंच पर सिकुड़ती हथेलियां और ठिठुरते बदन इस बात की गवाह हैं कि ठंड अब आम जनमानस के साथ साथ पशुओं और जानवरों के जिंदगियों के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है।

बेशक! रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और फुटपाथों पर रात गुज़ारने वाले बेघर लोग कंबल के इंतज़ार में टकटकी लगाए बैठे हैं। किसी की आंखों में नींद नहीं, तो किसी के चेहरे पर सुबह होने की बेसब्री साफ देखी जा रही, क्योंकि रातें अब और लंबी व बेरहम हो चली हैं। दिहाड़ी मजदूर काम की तलाश में घर से निकल जरूर रहा है लेकिन कपकपाती व जमा देने वाली ठंड उनके हौसले पस्त कर दे रही है।सरकारी अस्पतालों में सर्दी-जुकाम, निमोनिया और सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की  संख्या लगातार बढ़ रही है। बुज़ुर्ग और छोटे बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। माँओ को अपने जिगर के टुकडो को सीने से चिपकाए ठंड से लड़ते हुए कभी भी दिखा जा सकता हैं, जबकि बुज़ुर्गों की कंपकंपाती होठ संवेदनहीन सरकारी मशीनरी पर सवाल खड़े कर रही है। प्रशासन द्वारा अलाव और रैन बसेरों की व्यवस्था के दावे ज़मीनी हकीकत से टकराते नज़र आ रहे हैं। जनपद के तमाम नगर पंचायत में अलाव नदारद हैं, तो कहीं कंबलों का वितरण नाकाफी। ऐसे में समाज के संवेदनशील हाथ ही ठिठुरती ज़िंदगियों के लिए सबसे बड़ा सहारा बन सकते हैं। ऐसे मे कहना मुनासिब होगा कि ठंड से कपकपाती इन ज़िंदगियों को सहारे की गर्माहट चाहिए, वादों की जमुला नहीं।

🔵 रिपोर्ट - संजय चाणक्य 

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